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Tuesday 11 July 2017

जिये जाती हूँ मैं

~~जिये जाती हूँ मैं ~~~

बेबसी में अपनी तड़प कर रह जाती हूँ मैं ,
कितनी ख्वाहिशो को दिल में दबाती हूँ मैं !!

चाहती हूँ चाहे कोई समझे ना समझे मुझे,
मेरे अपने मुझे समझे ये आस लगाती हूँ मैं !!

दिल में मेरे भी है ढेरो अरमाँ हज़ारो बाते,
सारी बाते ख़ुद ही ख़ुद से किये जाती हूँ मैं !!

मेरी ख़ुशी में जो हंसेगा रो दूँ तो वो रो देगा,
इस दौर में ऐसे यार के सपने सजाती हूँ मैं !!

ज़ख्म देता है जब कोई अपने तल्ख लहज़े से ,
दिल के ज़ख्मो को बड़े प्यार से सहलाती हूँ मैं !!

करे कोई कितनी भी कोशिशे तोड़ने की मुझे,
हर बार टूट कर फिर से नई बन जाती हूँ मैं !!

उलझने जब उलझा देती हैं सवालो जवाबो में,
नए तरीको से उन उलझनों को सुलझाती हूँ मैं !!

बहुत नादाँ सी हूँ कुछ पगली सी भी हूँ मगर,
तड़पते दिल को समझदारी से समझाती हूँ मैं !!

इक दिन आएगा जब दामन में खुशियां बरसेगी,
इसी उम्मीद को रौशन किये
जिये जाती हूँ मैं !!

हाँ इसी उम्मीद को रौशन
किये जिये जाती हूँ मैं.....!!

रूपम बाजपेयी "रूप" 
कवयित्री लेखिका
जबलपुर मध्य प्रदेश
ट्वीटर - @BajpaiRoopam
दैनिक भास्कर में प्रकाशित मेरी ये रचना

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