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Wednesday, 19 July 2017

मेरी वेदना

मेरी वेदना

मेरी वेदना तुम क्या जानो
जब ख़ामोशी ही पढ़ ना सके
रूदन का शोर कैसे सुनोगे
नयनो का दुख जब पढ़ ना सके !!

दुनिया ने वार किया था
मुझ कमज़ोर सी लड़की पर
तब भी तो तुम मौन खड़े थे
मेरे लिये कभी तुम लड़ ना सके !!

ह्रदय की चोट को कैसे भूलू
देह की चोट को भुला भी दूँ
अपनों के घात को भूल के
जीवन आगे बढ़ ना सके !!

अब जब कोई साथ नही है
मेरे हाथों में कोई हाथ नही है
अब खुद ही खूद को अपनाना है
लड़ना है उससे जिससे लड़ ना सके !!

तुमने सदा ही मेरा हंसना देखा
पर कब देखा मेरी तन्हाई को
छोटे छोटे कुछ सपने है पलको पे
जो आँखों पर कभी पल ना सके !!

सपनो को अपने आकार में दूँगी
फंसी थी भंवर में अब पार करुँगी
चलेगे उन रास्तों पर हंस कर अब
डर से दुनिया के जिस पर चल ना सके !!

मेरी वेदना तुम क्या जानो
जब ख़ामोशी ही पढ़ ना सके....

रूपम बाजेपेयी "रूप"
लेखिका कवियत्री
जबलपुर

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