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Thursday 1 March 2018

मेरी माँ

मेरी माँ
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रग रग में बस जाती माँ
प्रेम कलश छलकाती माँ
माँ की महिमा कैसे गाउँ
रोम रोम खिल जाती माँ !!

मेरी माँ ना सोती थी
बीमार सी जब मैं रहती थी
सारी रात सिरहाने बैठी
सर हाथों से थपथापाती माँ !!

जब तक खाना ना खाऊं
बार बार बुलाती खाने को
मेरे लिये मेरी पसंद के
नये नये पकवान बनाती माँ !!

कभी यूँ भी हुआ के
हार के मैं बैठ गई हालातों से
ले हाथों में हाथ मेरा
मुझमे हौसला जागती माँ !!

मेरी बेटी नही किसी से कम
एक दिन आकाश छू जायेगी
हर बात मुझे इस बात का
है विश्वास दिलाती माँ !!

किसी को मन की पीड़ा
समझाने मेरे पास शब्द ना थे
मेरी आँखों से ही दिल का हाल
झट से समझ जाती माँ !!

तुम जो मेरे साथ हो तो
हर संकट से लड़ जाऊँगी
मेरी शक्ति मेरा संयम
तुम ही तो बन जाती माँ !!

मुझे कभी ना काँटा लगे
ऐसी दुआ हर वक़्त वो करती है
मेरे लिये ज़माने से अकेली ही
लड़ जाती माँ !!

ईश्वर का तुम "रूप" नही
तुम ही तो मेरी ईश्वर हो
मेरा मंदिर मेरी पूजा
मेरा सब कुछ कहलाती माँ !!

रुपम बाजपेयी "रूप" ✍

Saturday 29 July 2017

बाद मेरे

मेरी आवाज मेरे शेर,
गीत नज़्म और गज़ल

मेरे ना होने पर भी
आपके साथ रहेगी

इक दिन मैं ना रहूँगी
इस #दुनिया में मग़र

बाद मेरे भी,
सबके लबो पर
मेरी बात रहेगी 😊

#रूपम_बाजपेयी_रूप

Wednesday 19 July 2017

मेरी वेदना

मेरी वेदना

मेरी वेदना तुम क्या जानो
जब ख़ामोशी ही पढ़ ना सके
रूदन का शोर कैसे सुनोगे
नयनो का दुख जब पढ़ ना सके !!

दुनिया ने वार किया था
मुझ कमज़ोर सी लड़की पर
तब भी तो तुम मौन खड़े थे
मेरे लिये कभी तुम लड़ ना सके !!

ह्रदय की चोट को कैसे भूलू
देह की चोट को भुला भी दूँ
अपनों के घात को भूल के
जीवन आगे बढ़ ना सके !!

अब जब कोई साथ नही है
मेरे हाथों में कोई हाथ नही है
अब खुद ही खूद को अपनाना है
लड़ना है उससे जिससे लड़ ना सके !!

तुमने सदा ही मेरा हंसना देखा
पर कब देखा मेरी तन्हाई को
छोटे छोटे कुछ सपने है पलको पे
जो आँखों पर कभी पल ना सके !!

सपनो को अपने आकार में दूँगी
फंसी थी भंवर में अब पार करुँगी
चलेगे उन रास्तों पर हंस कर अब
डर से दुनिया के जिस पर चल ना सके !!

मेरी वेदना तुम क्या जानो
जब ख़ामोशी ही पढ़ ना सके....

रूपम बाजेपेयी "रूप"
लेखिका कवियत्री
जबलपुर

Tuesday 11 July 2017

जिये जाती हूँ मैं

~~जिये जाती हूँ मैं ~~~

बेबसी में अपनी तड़प कर रह जाती हूँ मैं ,
कितनी ख्वाहिशो को दिल में दबाती हूँ मैं !!

चाहती हूँ चाहे कोई समझे ना समझे मुझे,
मेरे अपने मुझे समझे ये आस लगाती हूँ मैं !!

दिल में मेरे भी है ढेरो अरमाँ हज़ारो बाते,
सारी बाते ख़ुद ही ख़ुद से किये जाती हूँ मैं !!

मेरी ख़ुशी में जो हंसेगा रो दूँ तो वो रो देगा,
इस दौर में ऐसे यार के सपने सजाती हूँ मैं !!

ज़ख्म देता है जब कोई अपने तल्ख लहज़े से ,
दिल के ज़ख्मो को बड़े प्यार से सहलाती हूँ मैं !!

करे कोई कितनी भी कोशिशे तोड़ने की मुझे,
हर बार टूट कर फिर से नई बन जाती हूँ मैं !!

उलझने जब उलझा देती हैं सवालो जवाबो में,
नए तरीको से उन उलझनों को सुलझाती हूँ मैं !!

बहुत नादाँ सी हूँ कुछ पगली सी भी हूँ मगर,
तड़पते दिल को समझदारी से समझाती हूँ मैं !!

इक दिन आएगा जब दामन में खुशियां बरसेगी,
इसी उम्मीद को रौशन किये
जिये जाती हूँ मैं !!

हाँ इसी उम्मीद को रौशन
किये जिये जाती हूँ मैं.....!!

रूपम बाजपेयी "रूप" 
कवयित्री लेखिका
जबलपुर मध्य प्रदेश
ट्वीटर - @BajpaiRoopam
दैनिक भास्कर में प्रकाशित मेरी ये रचना

एहसान

एहसान ✍

एहसान दुबारा ज़िन्दगी दे
कर कुछ यूँ कर दिया लोगो ने
मुझसे मेरी मर्ज़ी से जीने का
भी हक़ छीन लिया लोगो ने ।।

रख दिया मुझको अपने पैरों
के नीचे यूँ मसल के की
चीखने का भी इक हक़
मुझको ना दिया लोगो ने ।।

एहसान कर के जब कोई
किसी की जान बचाता है
उसे ही एहसान जता जता
के फिर मार दिया लोगो ने ।।

जब भी अपनी मर्ज़ी से
जीवन में बढ़ना चाहो
एक एक पाई हिसाब बता
इज़्ज़त को तार किया लोगो ने ।।

ना हंस सकता है ना ही मर्जी से
ना रो सकता है वो बदनसीब
किस घड़ी में एहसान कर
ज़िन्दगी को खरीद लिया लोगो ने ।।

 ना फैसला ले सकता अपने
ना जीना शुरू ही कर सकता
एहसानफरामोशी की दे के
दुहाई अपमान किया लोगो ने ।।

एहसान बुरी से बुरी चीज है
ये कभी मत लेना तुम "रूप" 
ऐसी ज़िंदगी पल पल मारती है
ये दिखा दिया लोगो ने ।।

रूपम बाजपेयी "रूप" ✍
लेखिका ,कवयित्री
जबलपुर मध्य प्रदेश
ट्वीटर- @BajpaiRoopam
दैनिक प्रभात चक्र में प्रकाशित ये रचना

किसी रोज़

किसी रोज़ ✍

ग़ज़ल के रूप में
ढल जाऊँ किसी रोज़
हो ऐसा की तुझे मैं
याद आऊं किसी रोज़ ।।

बनती हूँ बिगड़ती हूँ
कश्मकश में हूँ रहती
या तो सवंर जाऊँ या
बिखर ही जाऊँ किसी रोज़ ।।

गमो की धूप में रह रह
कर रूह ज़ख़्मी हुई
फिर भी दिल करता है
कि मुस्कुराऊँ किसी रोज़ ।।

मोहोब्बत ही इक वजह
नही ज़माने में दर्द की
ये रिश्ते नाते गम देते है
सबको बताऊं किसी रोज ।।

बेटी का मुक़्क़द्दर लेके आई हूँ
इस दुनिया में लेकिन
अब चाहती हूँ बेटा बन भी
दुनिया में आऊं किसी रोज़ ।।

आकाश के नीचे रखे इक
पिंजरे में हूँ कब से कैद
जी करता है खोल परो को
उड़ जाऊँ किसी रोज़ ।।

रूपम बाजपेयी "रूप"✍
कवयित्री लेखिका
जबलपुर मध्य प्रदेश
ट्वीटर - @BajpaiRoopam

मदद

मदद ✍

जिसे मिलना चाहिए ये
उसे ही नही मिलती
"मदद" है वो शय ज़रूरतमंद
को ही नही मिलती !!

बढ़ते है ढेरो हाथ एक
अमीर को थामने सीढ़ी पे
सड़क पर गिरे गरीब को तो
एक ऊँगली नही मिलती !!

जो खून जला कर लाता है
घर दो वक़्त की रोटी
उसी को कोसता बच्चा घी
में चुपड़ी रोटी नही मिलती !!

किसी के दर्द का सबब
यहाँ किसी की ख़ुशी क्यूँ है
क्यूँ किसी की ख़ुशी से
किसी को ख़ुशी नही मिलती !!

जिसे देखो यहाँ नये रंग ढंग
और फरेब लिये है मिलता
ना जाने क्यूँ किसी से कभी
अपनी तासीर नही मिलती !!

ये दुनिया कैसी है "रूप"
यहाँ का दस्तूर कैसा हैं
किसी को ख्वाब तो दिखते है
मग़र ताबीर नही मिलती !!

रूपम बाजपेयी "रूप"
कवियित्री, लेखिका
जबलपुर मध्य प्रदेश
Tweeter - @BajpaiRoopam