मेरी माँ
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रग रग में बस जाती माँ
प्रेम कलश छलकाती माँ
माँ की महिमा कैसे गाउँ
रोम रोम खिल जाती माँ !!
मेरी माँ ना सोती थी
बीमार सी जब मैं रहती थी
सारी रात सिरहाने बैठी
सर हाथों से थपथापाती माँ !!
जब तक खाना ना खाऊं
बार बार बुलाती खाने को
मेरे लिये मेरी पसंद के
नये नये पकवान बनाती माँ !!
कभी यूँ भी हुआ के
हार के मैं बैठ गई हालातों से
ले हाथों में हाथ मेरा
मुझमे हौसला जागती माँ !!
मेरी बेटी नही किसी से कम
एक दिन आकाश छू जायेगी
हर बात मुझे इस बात का
है विश्वास दिलाती माँ !!
किसी को मन की पीड़ा
समझाने मेरे पास शब्द ना थे
मेरी आँखों से ही दिल का हाल
झट से समझ जाती माँ !!
तुम जो मेरे साथ हो तो
हर संकट से लड़ जाऊँगी
मेरी शक्ति मेरा संयम
तुम ही तो बन जाती माँ !!
मुझे कभी ना काँटा लगे
ऐसी दुआ हर वक़्त वो करती है
मेरे लिये ज़माने से अकेली ही
लड़ जाती माँ !!
ईश्वर का तुम "रूप" नही
तुम ही तो मेरी ईश्वर हो
मेरा मंदिर मेरी पूजा
मेरा सब कुछ कहलाती माँ !!
रुपम बाजपेयी "रूप" ✍